कल रात, हम भी कुछ बातें कहना चाहते थे तुमसे,
वो बातें कुछ से कुछ ज्यादा हैं, इसका एहसास तब हुआ
जब एक ही पल में लफ़्ज़ों की ईमारत बन गयी मन में।
पर शायद वो कच्ची मिट्टी की बनी थी,
कुछ ख्यालों के तेज़ झोंके भी नहीं झेल पाई।
ढह गयी है वो ईमारत,
खो गए हैं वो लफ्ज़,
और उसके मलबे में कहीं दब गयी हैं वो बातें, अनकही सी...
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4 comments:
nice composition.........
पुख्ता होते ही मर गयी चीज़ें
बात कच्ची थी, बात अच्छी थी
घर बना कर बहुत मैं पछताया
इससे खाली ज़मीन अच्छी थी।
@ deep and sid, beautiful lines..
yaar...this one is a masterpiece...too good...tu toh ekdum mast poet ban gayi hai.
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