वो जो फिरता अकेला है,
लगता सबको आवारा है।
पर हो जैसा भी,
है फलक की रौनक यही।
कभी सूरज कि किरणों में खिल उठता है चेहरा उसका,
फिर इठलाता रहता है यहाँ वहाँ।
कभी चांदनी में भी दिखता है गुमसुम सा,
रहगुज़र कि तलाश में करता है सफ़र तन्हा।
दूर देस से आई बदलियों कि टोली जब लगती है अपनी सी,
तो एक ही पल में घुल जाता है इनमें।
पर अगले ही पल होता है एहसास, कि ये तो नहीं है मंजिल उसकी,
वो बूंदों के कतरे नहीं हैं हमजाद उसके।
तलाश है उस ज़मीन के टुकड़े की,
जिसमे समाना है इक दिन उसको।
खुदा ने बनाया है वो ज़र्रा भी,
ये यकीन तो है उसको।
आयेगा वो पल, जब ख़त्म होंगे इंतज़ार के लम्हे भी,
बरसेंगी बूँदें, और मिट जायेगा वजूद उसका भी।
PS: Saw this small little cloud in the evening; it was shining bright with with setting sun's reflection. Then it went away somewhere; but it kept on strolling in my mind. I found myself so much like this cloud. May be there is no difference in life of objects there at sky(cloud) and those at earth(me).
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4 comments:
तलाश है उस ज़मीन के टुकड़े की,
जिसमे समाना है इक दिन उसको।
खुदा ने बनाया है वो ज़र्रा भी,
ये यकीन तो है उसको।
amazing lines....
I hope that piece of cloud doesn't read this blog...
verna turant hi aasmaan se zameen pe kood ke suicide kar leta :P
waah waah kya baat hai.. hum toh kayal ho gaye apki poetry ke :)
mast tha.......
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